शनिवार, 15 मई 2010

पौधकुमार का हैप्पी बरडे कब मनेगा?

एक बार रात में पौधकुमार की शोरगुल से नींद खुल गयी तो उन्होंने देखा कि सामने वाले फ्लैट्स नामी पेड़ की एक डाल पर चमाचम लाइटें जल रहीं थीं और बहुत सारे बच्चे वहाँ गाने-बजाने पर उछल-कूद कर रहे थे.
पौधकुमार ने बराबर में खड़े शमी वृक्ष से पूछा — शमी चाचा, ये सामने वाले पेड़ के बच्चे क्यों नाच-गा रहे हैं?
शमी चाचा — [ऊँघते हुए] पौधू बोलो मत, चुपचाप सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है, जल्दी नहीं उठे तो कार्बन खुराकी न मिल सकेगी.
पौधकुमार — चाचा, आप जागो तो सही, मुझे उत्तर जाने बिना नींद न आ सकेगी. बताओ तो आज इन फ्लैट्स-फलों को क्या हुआ है?
शमी — [आँखें खोलकर देखता है, फिर बोलता है] बेटा, आज किसी बच्चे का हैप्पी बरडे है इसलिए ये सभी इकट्ठा होकर हैप्पी बरडे मना रहे हैं और नाच-गा रहे हैं.
पौधू — चाचा, हैप्पी बरडे क्या होता है?
शमी — बेटा, आदमी लोग अपने बच्चों के जन्म वाली महीना तारीख को हर साल इसी तरह मनाते हैं. केंडिल जलाकर बुझाते हैं, केक काटते हैं, बाँटते हैं और खाते हैं. बरडे बॉय को बाकी सभी बच्चे गिफ्ट देते हैं.
पौधू — बस, इस तरह हो जाता हैं हैप्पी बरडे?
शमी — हाँ बेटा, बस इसी तरह होता है, अब सो जाओ.
पौधू — चाचा, तो क्या मेरा भी हैप्पी बरडे मनेगा? मेरा कब जन्म हुआ था?
शमी — बेटा, हम लोगों का जन्म तो मौसमी होता है. अधिकांश का बरसात के मौसम में ही जन्म होता है और कुछ का ही अन्य मौसम में होता है. तुम्हारे जन्म की तारीख तो याद नहीं है बेटा. लेकिन इतना जरूर याद है जब तुम अंकुरित हुए थे तब उस दिन इन अपार्टमेंट्स के बच्चे अपने हाथों में रंग-बिरंगी फूल वाली डोरियाँ बाँधे घूम रहे थे. बड़ों के हाथों में भी उस दिन डोरियाँ बँधी थीं. उस दिन शाम को हलकी-हलकी फुहार भी पड़ी थी.
पौधकुमार सुनकर बहुत खुश हुआ. शमी चाचा से पूछा — और क्या हुआ था चाचा जी?
शमी — बेटा सो जाओ, रात बढ़ रही है. रात में अच्छे बच्चे शोर नहीं करते. चुपचाप सोते हैं.
पौधू — हम तो धीरे-धीरे बोल रहे हैं. इससे किसी को क्या परेशानी होगी?
शमी — बेटा रात में खुसुर-फुसुर भी करते हैं तो भी शोर होता है. छोटे-छोटे कीड़ों की आवाजें भी तेज़ सुनाई देती हैं. हमारे समाज में कई बूढ़े वृक्ष भी हैं और कई रोगग्रस्त वृक्ष भी हैं. उनका हमें ख्याल रखना चाहिए. जिन्हें  बड़ी  मुश्किल से नींद आती है और ज़रा सी आवाज़ से बेचारों की नींद उचट जाती है. रात में सोने वाले पेड़-पौधे दिनभर स्फूर्ति से भरे रहते हैं और भपूर परोपकार करते हैं.
पौधू — चाचा, हम लोग काम करने इधर उधर क्यों नहीं आते-जाते?
शमी — बेटा, तुम्हारे सारे सवालों का उत्तर मैं सुबह दूँगा. अभी तुम सो जाओ. नींद नहीं आ रही तो भगवान् कल्प को याद करो, और आँखें बंद कर लो.
पौधकुमार ने शमी चाचा की बात मानी और चुपचाप 'कल्पवृक्ष' के जाप में जुट गया. कुछ देर बाद उसको नींद आ गयी. लेकिन 'बरडे-हुडदंग' मचाते बच्चों से बीच-बीच में नींद उचट जाती थी. पर पौधू प्यारा चुपचाप उन्हें देखता और वृक्ष जीवन के तरह-तरह के सवालों में घिर गया —
'मैं कहाँ से आया?'
'मैं बड़ा होकर क्या बनूँगा?'
'क्या पूरे जीवन मैं एक ही जगह खड़ा रहूँगा जैसे सब खड़े रहते हैं?'
लेकिन बोगन बेलिया तो बोल रही थी "जो एक बार गमले में जगह पा जाए उसका जीवन सँवर जाता है. उसको खाद पानी के लिए ज़मीन के अन्दर भटकना नहीं पड़ता. पेड़-पौधों की भीड़-भाड़ में खाने-पीने की छीना-झपटी नहीं करनी पड़ती. गमले की जिन्दगी एकदम फ्लैट्स वाली ज़िन्दगी की तरह है. जितनी जगह मिले, उतनी पूरी की पूरी अपनी. बस अपनी जड़ें समेटकर रहो. ज़्यादा फैलकर करना भी क्या है? कौन-सा परिवार बढ़ाना है? जब तक परिवार बढाने लायक होंगे अपने बच्चों के लिए नए गमले आ ही जायेंगे. इसलिए गमला-जीवन बड़ा ही सुखद जीवन है. ना खाना-खुराकी की चिंता, ना वंश-वृद्धि का टेंशन. बच्चे ना हों तो खाना-खुराकी में हिस्सेदारी बनाने की भी ज़रुरत नहीं."
जो बोगन बेलिया ने कहा क्या वह सही जीवन-पद्धति है? गुलाब तो कहता है उसकी वंश-वृद्धि तो बिना बीज के भी हो जाती है. बस उसकी शाखा की कलम बनाकर गमलों में रौंप दो फिर कुछ दिनों में ही उस जैसा ही एक भाई और उठ खड़ा होता है. तुलसी अम्मा कितनी अच्छी है जो मुझे हमेशा प्यार से देखती है. कल तुलसी अम्मा कितने दुखी मन से बोल रही थी "पहले उनके पूर्वजों का हर घर के आँगन में घेरा था. पूजा थी. सम्मान था. पर अब कैक्टस भाइयों को गमलों में ज़्यादा जगह मिल रही है. घरों की व ओफीसिज़ की शोभा उनसे होने लगी है. उनमें कौन-सी अच्छी बात है जो मुझमें नहीं. क्या बिना पानी के कई दिनों तक जीवित रहना ही उसकी अच्छाई है. मुझे एक-दो दिन पानी ना मिले मैं तो मुरझा जाऊँ."
सोचते सोचते अपना नीमन, अपना पौधू, अपना पौधकुमार कब सो गया. उसे पता ना चला.

अब मैं सोच रहा हूँ. क्या पेड़-पौधों को नींद में सपने आते होंगे? अगर मुझे याद रहा तो कभी चुपचाप पौधकुमार से ही पूछूँगा कि तुमने कल रात क्या सपना देखा?

5 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

...तुलसी अम्मा कितने दुखी मन से बोल रही थी "पहले उनके पूर्वजों का हर घर के आँगन में घेरा था. पूजा थी. सम्मान था. पर अब कैक्टस भाइयों को गमलों में ज़्यादा जगह मिल रही है. घरों की व ओफीसिज़ की शोभा उनसे होने लगी है. उनमें कौन-सी अच्छी बात है जो मुझमें नहीं. क्या बिना पानी के कई दिनों तक जीवित रहना ही उसकी अच्छाई है....
--वाह!

महामूर्खराज ने कहा…

आपकी क्ल्पनाशीलता तो गज़ब है आपकी रचनाएँ संकलित करने योग्य है विचार कर रहा हूँ किसी निष्कर्ष पर पहुँचने पर ईमेल द्वारा आपको सूचित करूँगा।
एक विनती है लेखन को विराम मत दीजिये मेरे कारण भी नहीं क्या पता कल मैं रहूँ या ना रहूँ जो आपको आगे लिखने के लिए विनती करता रहे।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सदर नमस्कार,
लेखन में प्रयोगधर्मिता मुझे भाती हैं. एकदम अलहदा शैली. भावुक करती है... व्याकुल भी...
आपके इस अद्भुत लेखन के लिए आपको प्रणाम करता हूँ.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bilkul hi naye andaj me...........

ekdam alag........

bahoot achchhi lagi

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीय एस. एम्. हबीब जी और उपेन्द्र जी
सराहने के लिए धन्यवाद.
आपका प्रेम मेरे लेखन का संबल है.
मैं खुद पाठक की दृष्टि से इन्हें पसंद करता हूँ. और इन्हें आगे बढ़ाना भी चाहता हूँ. लेकिन जल्दबाजी में नहीं.
कहानियाँ आगे बढेंगी लेकिन कुछ समय बाद.
अभी कहानियों के पात्रों ने अपने सेवक 'लेखक' को परीक्षा अवकाश दिया हुआ है. परीक्षाएँ समाप्त होंगी तो लौटना होगा. एक बार फिर धन्यवाद मनोबल बढ़ाने को.

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