शनिवार, 24 अप्रैल 2010

ज्योतिषी पंडित पीपल प्रसाद जी का रत्नज्ञान

एक गाँव में चौपाल के पास एक बहुत विशालकाय वृक्ष खडा था. नाम था पंडित पीपल प्रसाद जो कभी पुराने पेड़ों के बीच पंडित लाल धागे वाले के नाम से मशहूर हुआ करते थे. नयी पीढ़ी नयी सोच के लोगों में आज अपनी अहमियत कम होता देख पंडित जी ने फिर से उसी ५० साल पुरानी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए काफी चिंतन किया और मन-ही-मन एक योजना बना डाली.

पंडित जी ने अपनी छाँह तले एक साइकिल-दुकान को आश्रय दिया हुआ था. जो पेड़ अपनी जवानी में लोगों के अधूरे अरमानों को पूरा करने वास्ते कभी लाल धागों से लिपटा रहता था आज समय के फेर ने उसे अपनी शाखाओं में स्कूटर-साइकिल के टायर-ट्यूब पहनने को मजबूर कर दिया था. लेकिन पंडित जी हर स्थिति को अपने अनुकूल बनाने में सिद्धहस्त थे. उन्होंने इसे रत्नों की महिमा के गुणगान में प्रयोग किया.

"पहले मैं नर्वस रहता था. मन में सदा घबराहट बनी रहती थी. भाग्य के कपाट बंद थे. कोई पक्षी मुझ पर बसेरा करने को राजी ना था. तने पर कुत्ते मूतते थे, डालों पर गिद्ध बैठते थे. उल्लू कोटर बनाने को उतावले दीखते थे. लेकिन अब... अब बिलकुल ऐसा नहीं है."

"जिसके तने में जितनी ज़्यादा मोची कीलें ठुकीं हों वह उतना ही आत्म-विश्वास से भरा रहता है. साइन बोर्ड वाले वृक्षों का हाजमा सही रहता है और टायर-ट्यूब पहनने वाले वृक्ष तो सदा संत-स्वभावी होते हैं, उनपर कभी दुष्ट शनि [लकडहारे] की वक्र दृष्टि नहीं पड़ती."

"और यदि किसी  पेड़ को रात में 'आदम बच्चों को झूला झुलाने के' सपने आते हों तो वे अपनी सबसे निचली शाखा में दो मोटर-साइकिल के टायर पहनें. इससे सपने आना बंद हो जायेंगे. आदम बच्चे पास आकर खड़े होने लगेंगे."

"और यदि कोई पेड़ अपने छरहरे होने के बावजूद किसी लतिका को सहारा देने की इच्छा पूरी नहीं कर पा रहा है तो वह दिन में दो बारी अपनी शाखाओं पर जंगली कौवों को बैठा कर नीचे निकलते श्वेतवस्त्रधारी राहगीरों पर बीट से अर्घ्य दिलवायें. मनोकामना शीघ्र पूरी होगी."

पंडित जी आसपास बसे घरों के छज्जों से झाँक रहे गमल-गुल्मों को भी प्यार से देखते थे और उनको उनकी "थोड़ी मिट्टी, थोड़ा पानी" वाली किस्मत पर धीरज रखने को कहते. उन्हें कहते "तुम यदि तुलसी गमले पर सुबह-शाम जलने वाले दीपक का कार्बन-प्रसाद ग्रहण कर पाओ तो वह तुम्हारे उद्धार में सहायक होगा. "

इस तरह पंडित पीपल प्रसाद धीरे-धीरे वृक्ष-समाज में अपनी जगह बनाने लगे.



शेष अगले अंक में...

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