गुरुवार, 18 नवंबर 2010

चुनाव


कथा का मुख्य शीर्षक : 
जितना करूँगा भौं-भौं, उतना मिलेगा पौं- पौं


[१] सच्चा स्वानतंत्र
एक पहाड़ी तलहटी में कुत्तों का समाज रहता था. उस समाज में जातपात, छुआछूत और अंधविश्वास बहुत फैला था. इस कारण वे आपस में मिलजुलकर नहीं रहते थे. ज़रा-ज़रा सी बात पर मरने-मारने को उतारू हो जाते. पंडित कुत्तों को बिलकुल पसंद नहीं था कि जाटव, गुप्ता, खान और सिंह बिरादरी के कुत्ते आकर उनके भाई-बहनों और बेटे-बेटियों से मेलजोल बढ़ायें. इसलिए पंडित भयंकर शर्मा ने अपनी बिरादरी के बच्चों के लिए अलग पाठशाला खोली हुई थी. 

दूसरी तरफ सिंह बिरादरी के कुत्ते भी नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा चिहनित (कोडिड) खम्बे और पेड़ों को कोई दूसरी बिरादरी के कुत्ते टांग उठाकर गीला करें. 

जाटव और पासवान बिरादरी के कुत्तों ने झूठन और मल पर एकाधिकार के लिए हमेशा लड़ाई की. उन्होंने कुत्ता-सरकार से माँग की कि उनके अधिकार वाले कार्यों में ऊँची बिरादरी के कुत्तों की दखलंदाजी बंद करवायी जाए. साथ ही, सवर्ण बिरादरी के कुत्ते जो हजारों सालों से दलित कुत्तों का हक़ मारते आए हैं अब उन्हें पचास प्रतिशत का आरक्षण दिया जाए. इसके बाद ही कुत्तों का निचला दलित तबका उन्नति कर सकेगा. सच्चे मायने में स्वानतंत्र भी तभी आयेगा.


[2] पट्टासिंह का पट्टा
पट्टासिंह 'सिंह' बिरादरी के होने के साथ-साथ समस्त कुत्ता समाज के सरदार थे. वह 'काट के रेस पार्टी' से चुनकर आए थे. सरदार बनने से पहले वह बुलडोगों की बैंक के रखवाले और वर्ल्ड कुत्ता वेफेयर सोसाइटी के जनरल सैकेट्री रह चुके थे. इसलिए वह बुलडोगों, जेबी डोगों, अलशेसियन, जर्मन शेफर्ड आदि सभी तरह के कुत्तों से उनकी पहचान थी. काट के रेस पार्टी ज्वाइन करने से पहले सरदार पट्टासिंह 'कूकर बैंक' के गवर्नर रह चुके थे. 

पट्टासिंह के सरदार चुने जाते ही समस्त पट्टेधारी कुत्तों ने 'काट के रेस' पार्टी से पर्षों पुरानी दुश्मनी भुला दी क्योंकि पट्टेधारियों को उम्मीद जगी कि अब उन्हें भौंकने, गुर्राने, दौड़ाने और काटने के ज़्यादा अवसर दिए जायेंगे. लेकिन ऐसा कुछ न हो सका क्योंकि पट्टासिंह का पट्टा 'काट के रेस' पार्टी का खानदानी पट्टा था. 

इस पट्टे को सभी 'काट के रेसी' सलाम करते और उसके पहननेवालों के नाम पर अपनी एकजुटता दिखाया करते. 'काट के रेस' पार्टी में समय-समय पर दबंग कुत्तों ने उस पट्टे को पाने की चाहत की लेकिन एक गूंगा कुत्ता ही अपने इरादे में सफल हो पाया. बीच में एक बार भौंभोंपा की सरदारी आ गई लेकिन चुनावों के बाद काटकेरेसी फिर से सरदारी पाने में सफल रहे. इस बार एक दूसरा सफल कुत्ता पट्टासिंह निकला जिसने 'सरदारी का समय' बिना भौंके, बिना काटे गुजार दिया. यह तब की बात है जब भौंभौंपा की सरदारी थी और अति उत्साह में उन्होंने कुछ निर्णय लिए जैसे जल्दी चुनाव का. 


[3] चुनाव
अब आगे ...
चुनाव होने वाले थे. इस बार चुनावों में सभी पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे थे. मुख्यतः दो पार्टियों में मुकाबला था 'काटो दौड़ो पार्टी' और 'भौंको भौंको पार्टी' के बीच. इनके अलावा क्षेत्रीय पार्टियाँ - बहुस्वान समाज पार्टी, स्वान्दल, मारो काटो पार्टी, भारतीय भागमभाग पार्टी ने भी जोर अजमाइश के इरादे से दोनों बड़ी पार्टियों को तगड़ी टक्कर देने के लिए तैयारियाँ शुरू कर दीं. 

चुनाव से पहले तक भौंभौंपा की सरदारी थी लेकिन इस सरदारी को चला पाना मुश्किल हो रहा था क्योंकि करी क्षेत्रीय टोलियों की मदद से ये सरदारी खींची जा रही थी. कई स्वभाव वाले कुत्तों का जमावड़ा होने से सरदार 'अड़ियल शिकारी' जो केवल भौंकने में भरोसा करते थे, काटने, गुर्राने, दाँत निपोरने जैसी हरकतों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. 

इसी कारण 'लालकाले धब्बेवाले' भौंकवानी कुत्ते ने एकक्षत्र सरदारी के लिए राष्ट्रीय योजना बनायी. भारत गुदय, इंडिया स्टूलिंग और सीनातान रतियात्रा के द्वारा हम पूरी सरदारी पर काबिज हो पायेंगे - ऐसा सब्जबाग़ सभी भौंभौंपा के कुत्तों ने देखा. 

लेकिन विधाता का लेखा ...! जो किसी ने नहीं देखा तो भौंभौंपा के कुत्तों ने भी नहीं देखा था. यहाँ तक कि दूरदर्शी लालकाले धब्बेवाले भौंकवानी ने भी नहीं देख पाया. अच्छी-भली सरदारी 'गुदय', 'स्टूलिंग' और 'रतियात्रा' की भेंट चढ़ गयी. कोई बात नहीं. इस बार के चुनावों में भौंभौंपा के कुत्ते फिर प्रयास करेंगे. 

मीटिंग हुई. ज़मीनी काम पर जोर दिया गया. मीटिंग में पार्टी प्रमुख भौंकवानी ने कहा — सदस्यता अभियान चलाया जाए. अल्पसंख्यक कटखने कुत्तों को भी पार्टी में शामिल किया जाए. टिकट देने में सभी वर्ग की मानी कुतियाओं को भी प्रतिशत इलाकों में सार्वजनिक स्तम्भ ढूँढ़े जाएँ. मरियल, बीमार और विकलांग कुत्तों से हमदर्दी दिखायी जाए. एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने के इच्छुक विनम्र कुत्तों को पेम्पूर्वक सूँघकर भौंभौंपायी खुद गंतव्य तक छोड़कर जाएँ. ऐसे लाचार कुत्तों को 'काट के रेसियों' से बचायें. मदद करते समय सदस्यता के लिए प्रेशर ज़रूर डालें. प्रेशर बहुत ज़्यादा प्रेम से डालें. 

आने वाले तीव्र गंध के मौसम में लाल खुले मैदान में भौंक भौंक पार्टी का बड़ा 'स्वान सम्मलेन' होना तय हुआ जिसमें भौंकवाणीजी का जोशीला भौंक-भाषण होगा. अधिक से अधिक स्वान्बल के साथ पहुँचने का सभी पार्टी सदस्यों को निर्देश ज़ारी हुआ. 

तीव्र आम की गंध देने वाला मौसम आ गया. भौंकवाणीजी  लाल खुले मैदान में 'सीनातान' का नारा लगाते हुए चढ़े. भौंकवाणीजी ने देखी - भौंक-जयकारा लगाती हुई स्वानभीड़. मन गदगद हो उठा, तन-बदन जोश से और नयी उमंग से भर गया. 

बोले — मेरे वान भाइयो! भौंभौंपा के सच्चे कर्मनिष्ठ वफादारो! अपने-अपने इलाकों में रात-दिन भौंको. ज़रा-सी आहट पर भौंको. यदि तुम्हारे इलाके में रात को कोई आदम चौकीदार घूमता हो तो चौकीदार से तेज़ भौको. इतना भौको कि चोरी का, सीनाजोरी का, हरामखोरी का, हरकत छिछोरी का, या पार्टी छोरी का - कोई भी, कैसा भी विचार किसी के दिमाग में ना आने पाए. सभी भौंभौंपा के वफादारों को मालूम होना चाहिये और हमारे कूकरशास्त्र में भी आया है - जितना करेंगे भौं-भौं[ उतना मिलेगा पौं-पौं. अर्थात हम जितना भौंकेंगे, उतना ही सफल होंगे. जितना बोलेंगे उतना पायेंगे. आप यहाँ पौं-पौं का मतलब साधन या गाड़ी से भी ले सकते हैं. गाड़ी तभी मिलेगी जब भौंकोगे. 

याद रहे - पड़ने वाली पहली बारिश से पहले कुत्तम मीनार को अपने अनमोल वॉट'र से टांग उठाकर कुकुरमुत्ते वाले निशान पर वॉटिंग दें . आप भूलकर भी सामने की लाठ पर पिचकारी न मारें. जल्द ही हमारी फिर सरदारी होगी. इस बार भारत गुदय और इंडिया स्टूलिंग का लाभ सबको मिलेगा. कुछ मीडिया के कुत्ते पूछ रहे थे कि क्या मेरे और अड़ियल शिकारी के बीच सरदारी को लेकर झगड़ा है? मैं इस बात के जवाब में कहना चाहूँगा कि - नहीं है, ये कोशिशें 'काट के रेस' वाले और भागमभाग वाले कर रहे हैं. वे हमारी बढ़ती ताकत से घबराए हुए हैं. मेरा अनुरोध है कि हमें हमारी ताकत को इसी तरह एकजुट रखना है. जय भारत, जय भौंभौंपा. 

सन्देश — जितना करोगे शोर, उतना दिखेगा जोर. 

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