प्रकृति का स्वर

जब निराकार ईश्वर को मानवीकृत रूप दिया जा सकता है तो पेड़-पौधों, बादल, रास्तों, राजमार्गों, पुलों और प्रकृति में शामिल हो चुके तमाम उपादानों को मानवीकृत रूप क्यों नहीं दिया जा सकता?...


http://raamkahaani.blogspot.com/

Powered By Blogger

मेरी ब्लॉग सूची

प्रपंचतन्त्र

फ़ॉलोअर

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जीवन का एक ही सूत्र "मौन भंग मौन संग"