कहानी कुनबा
प्रकृति का स्वर
जब निराकार ईश्वर को मानवीकृत रूप दिया जा सकता है तो पेड़-पौधों, बादल, रास्तों, राजमार्गों, पुलों और प्रकृति में शामिल हो चुके तमाम उपादानों को मानवीकृत रूप क्यों नहीं दिया जा सकता?...
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मेरे बारे में
प्रतुल वशिष्ठ
जीवन का एक ही सूत्र "मौन भंग मौन संग"
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