शुक्रवार, 26 मार्च 2010

दो शब्द

प्रारम्भ से ही मेरी इच्छा कम बोलने वाले और चुपचाप रहने वाले साथियों से संवाद की रही। धीरे-धीरे यही इच्छा संकोचवश कविता लेखन के दौरान काल्पनिक कथोपकथन के रूप में विकसित हो चली। इसके बाद अर्थोपार्जन के समय व्यावसायिक अनवरतता न रहने से, रुचि व योग्यतानुरूप रोज़गार न मिलने से, ब्रेकेबल सर्विसेज़ के लम्बे ब्रेक काल में मानसिक तनाव से मुक्ति पाने को 'स्वगत कथन' की इच्छा प्रकृति की गोद में जा बैठी। फिर यही इच्छा पेड़-पौधों, पोखर-नदियों, रास्तों, पुल, बाँध पर्वत, मिट्टी... आदि सभी मूक जड़ वस्तुयों से पागलपने की हद तक बात करके सुख पाने लगी। उनमें मानवीय चरित्रों की परिकल्पना करने लगी, उनके कम्पन, उनके ठहराव, उनकी क्रियाओं, उनके परिवर्तनशील रूपों का व्याकरण अनुमानित करने लगी।

काफी समय से इन्हीं सबका पुंजीभूत रूप पुस्तकाकार रूप लेने को आतुर था। और आज वह आतुरता उन सब इच्छाओं को कहानी रूप में इंटरनेटीय ब्लॉग के ज़रिये आपके मोनिटर पर लाने में कुछ विराम पाती है। इसके लिए आभार उन परिस्थितियों और परिवेश का जिसमें कहानी पात्रों के सम्बन्ध में विस्तार से लगातार चिंतन का क्रम बनाए रखा। इनमे दो स्थितियां आज भी योगदान दे रहीं हैं - पहली, चार्टर्ड बस में खिड़कीवाली पिछली सीट जहां ऑफिस आते जाते प्रकृति चिंतन बिना व्यवधान हो जाता है। और दूसरी, कार्यालय में चिंतन की उड़ान भरने का भरपूर अवसर।

अपनी प्रियंवदा का सहयोग और उत्साह वर्धन के बिना इस ब्लॉग को शुरू करना संभव नहीं था। इसके लिए उन्हें ब्लोगर धर्म के नाते धन्यवाद देता हूँ।

आज २७ मार्च २०१०, दिन शनिवार को मैं संकल्प करता हूँ कि जब भी अवकाश मिलेगा "राम कहानी" में कोई-ना-कोई कहानी अवश्य जोडूंगा।

1 टिप्पणी:

honesty project democracy ने कहा…

PRIY PRATUL JI
Aapki jo byatha aur dukh hai wasme aap apne aap ko kabhi akela na samjhen.Wah din aab door nahi jab sahi mayne main rawan ka badh hoga chahe wah prdhan mantri ki kurshi par baitha ho ya krishi mantri ke kursi par ya kishi aur pad par baith kar aam logon ko ko satane aur unpar atyachar karne ka kam kar raha ho.Bus aap ek antim ahinsak aur sarthak sangharsh ke liye apne aap ko dus rupaiya aur har mahine ek din dene ke liye khud taiyar rahen aur iske liye apne aas parosh ke samaj ko bhi ekjut karne ka pryas poori takat se karen.Aapko hamari sahayata kabhi chahiye to hamare mobile pe kabhi bhi fhon karen.EK SACHCHE NAGRIK KI SAHAYATA AUR SURAKSHA HI EK SACHCHE NAGRIK KI PAHCHAN HAI.SACHCHE JAB EKJUT HONGE TO JHUTHE AUR AHANKARI RAWAN KA BADH NISCHIT HAI.

http://raamkahaani.blogspot.com/

Powered By Blogger

मेरी ब्लॉग सूची

प्रपंचतन्त्र

फ़ॉलोअर

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जीवन का एक ही सूत्र "मौन भंग मौन संग"