गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

हमारी आवाज सुनले बेटा!

http://chitthajagat.in/अब आगे...

रेलबाला जब आगे बढती है तभी उसे अपनी ओर २५-२६ साल का एक युवक आता दिखाई देता है. युवक रेलबाला पर आकर लेट गया और तनाव में काफी देर तक बडबडाता रहा. चेहरे से परेशान दिखने वाला युवक आँसू बहाता रहा. तब रेलबाला ने कहा — "बेटा, इस तरह क्यों जान गँवाता है, जा घर जा. तू जीते जी माँ को मार डालेगा. तेरे कष्टों की पीड़ा ऐसे हल ना होगी. जीकर तो देख, जीवन में आयी कष्टकर परिस्थितियाँ क्या जीवनपर्यंत चलने वाली हैं, नहीं, बिलकुल नहीं, ये दुःख आना-जाना है. सुख की प्रतीक्षा तो कर. कभी तो दुःख का बादल दूर भागेगा. प्यारे! तुझसे लाखों अपेक्षाएँ होंगी. माँ की, पिता की, बहनों की, मित्रों की. संघर्ष की इस विकट परिस्थितियों में अगर तुम डूब गए तो ना जाने कितनों को मानसिक घात लगेगा. जितने लोग तुम्हारे जन्म के समय प्रसन्न हुए होंगे उससे कहीं अधिक लोग व्यथित होंगे. अब जल्दी उठ जा बेटा, ट्रेन आने का समय हो गया है. सिग्नल बदलने वाला है. बेटा, मानजा मेरी बात, माँ की गोदी में बच्चा बनकर लेट जाना. तनाव समाप्त हो जाएगा."

युवक फिर भी पडा-पडा आँसू बहाता रहा. एक शब्द हलक से नहीं निकला, कंठ रुद्ध हो गया. [विधाता ने शायद मनुष्यों को वो कान ही नहीं दिए जो प्रकृति के इन ममत्व से भरपूर दिलासों को सुन पायें.]

पटरीरानी बोलती है — बेटा, मैं जानती हूँ, तेरा दुःख, तुझे महीनों से नौकरी नहीं मिली और दोस्तों का उधार भी बढ़ गया है. एक मालिक ने तुझे वेतन नहीं दिया जिसकी तुझे आशा थी, जो तुझे माँ के पास भेजना था. अब वही आखिरी उम्मीद भी तेरी टूट गयी. बेटा, यूँ हिम्मत ना हार. हमारी आवाज सुनले बेटा!

पटरीरानी और रेलबाला समझाती रह गयीं. लेकिन तीव्र गति से आती हुयी सरकार की नयी दुरंतो ने उसे प्रकृति का स्वर सुनने की शक्ति प्रदान कर दी.  "हे राम"

"राम नाम सत्य है"

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