मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

रिक्शा क़ानून क्यों तोड़ता है...

अब आगे...

जब वे दोनों फाटक प्रहरियों के पास से गुजरीं जहाँ उन्हें गले मिलती एक सड़क ने रोका. दोनों फाटक प्रहरी अपने दोनों ओर गाड़ियों को रोके खड़े थे. लेकिन कुछ कार वाले अपने आगे खड़े रिक्शे वालों को बुराभला कहते धमका रहे थे. रेलबाला ने एक कार में से आती आवाज सुनी —
"अबे हट बिहारी, अपना एरोप्लेन हटा."
रिक्शेवाला बोला — "साहब आगे फाटक बंद है. थोड़ा धीरज रखिये."
कार से आवाज आयी — "सान्नू धीरज दा पाठ सिखाएगा. तू शिक्षामंत्री है. हट जा (अपशब्द!) नहीं तो पोस्टर बना दूंगा. मैंन्नू जल्दी है, फ़ालतू की गल ना कर."
रिक्शे वाले के रिक्शे पहिये की कुछ तारें जब टूट गयीं तब दर्द के मारे रिक्शा फाटक के नीचे से निकलने लगा.  रेलबाला चिल्लायी — देख पटरी बहन, ये क्या कर रहा है, अभी ट्रेन आने वाली है और ये रिक्शा अपनी जान जोखिम में डाल रहा है.
पटरीरानी बोली — ये बिहारी इन हालातों में ही नियम तोड़ते हैं और गवर्नरी गुरूर पाले ओवरब्रिज बोलते हैं कि ये बिहारी नियम तोड़ने में अपनी शान समझते हैं. क्या इसी तरह के कुछ दूसरे प्रान्तों से सम्बंधित सूत्रवाक्य नहीं बनने चाहिए?
रेलबाला बोली — बहन तुझ पर गाडी आ रही है, ज़रा अपने नट-बोल्ट सहित तैयार होकर उसे अगले स्टेशन तक सुरक्षित पहुँचाओ.
कुछ देर तक धडाधड आवाज करती एक जनशताब्दी गुजर जाती है. फाटक प्रहरियों के डंडा हटाने से पहले ही रेलबाला और पटरीरानी आगे बढ़ जाती हैं क्योंकि वहाँ रोजाना की तरह प्रांतवाद वाली गालियों की बौछार होने वाली थी.

[शेष अगले अंक में ....]

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