बुधवार, 14 अप्रैल 2010

प्राकृतिक जीवन सहज है...

हिमालय पर एक संत रहते थे. प्रकृति से प्रेम था. वर्षों से विभिन्न विषयों पर शोध जारी था. नदी-नाले, पेड़-पौधे, पहाड़-झरने और जलचर-नभचर-थलचर के सभी जीवों के व्यवहारों का गूढता से निरीक्षण करना उनका रुचि का विषय था. जीवों के व्यवहारों पर चिंतन करते हुए उनके अंतःकरण में परमात्मा के प्रति आस्था बढ़ती गयी.
सभी प्राणी बिना अवरोध जी रहे हैं. सभी को सब प्रकार का सुख है. जिसके चरण नहीं वह बिन चरणों के ही तीव्रता से रेंग लेता है. जिसके चरणों में गति नहीं वह भी पंखों से आकाश नापकर इच्छित स्थान पर आता-जाता है. दाँत, नाखून, मुखाकृति, पाचन-तंत्र आदि शरीरावयव सभी प्राणियों को उनकी आवश्यकतानुसार ही मिले हैं.
ढूँढने से भी नहीं मिला उन्हें कोई अभावग्रस्त. उन्होंने मनुष्यों में भी ऐसा ही पाया लेकिन रो वही रहे थे, दुखी वही थे जिनकी इच्छाएँ अनावश्यक रूप से विकास किये थीं.
निष्कर्षतः प्राकृतिक जीवन सहज है यदि इच्छाएँ सीमित हैं.

http://raamkahaani.blogspot.com/

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