गुरुवार, 20 मई 2010

पौधकुमार के चाचा "शमी" को जानो

जब तक पौधकुमार अपना बढ़ा होगा, जब तक पटरीरानी  और रेलबाला किसी नयी दिशा में किसी नए अफ़साने को जन्म नहीं दे  लेंती तब तक हम वृक्ष-बिरादरी के कुछ प्रतिभाशाली पेड़ों से परिचय कर लेते हैं :
हम आज केवल शमी को ही जान पायेंगे.

शमी को जानो
— "शमी" वृक्ष ही यज्ञ की समिधाओं के लिए उपयुक्त वृक्ष है. यह बबूल और कीकर जाति का ही वृक्ष है. शमी वृक्ष की फलियों को खाकर कई दिनों तक ऋषि-मुनि भूखे रह सकते थे. इसे खाने से उपवास क्षमता बढ़ती है. शरीर पर कोई अधिक प्रभाव भी नहीं पड़ता. चर्बी घट जाति है.

  • यह राजस्थान का राज्य वृक्ष है; स्थानीय भाषा में इसे खेजडी कहते है तथा इसका वानष्पतिक नाम प्रोसोपिस सिनरेरिया है. — डॉ. हितेंद्र, वेब दुनिया से

  • शमी शनि ग्रह का पेड़ है. राजस्थान में सबसे अधिक होता है . छोटे तथा मोटे काँटों वाला भारी पेड़ होता है. कृष्ण जन्मअष्टमी को इसकी पूजा की जाती है . बिस्नोई समाज ने इस पेड़ के काटे जाने पर कई लोगों ने अपनी जान दे दी थी. यह पेड़ बरसात में अपने आप पैदा होता है . इस पेड़ के फल को सांगर और साँगरी भी कहते है. — के. सी. शर्मा, वेब दुनिया से

  • कहा जाता है कि इसके लकड़ी के भीतर विशेष आग होती है जो रगड़ने पर निकलती है ... इसे शिंबा; सफेद कीकर भी कहते हैं. — कुमार शिव, वेब दुनिया से

  • शमी अर्थात छोंकर या खेजड़ के वृक्ष का बल्लभ संप्रदाय में अधिक महत्व माना गया है। इस वृक्ष का महत्व केवल इस बात में नहीं है कि इसकी जड़, तना, छड़े पत्तियां आदि सभी काम आते हैं, इस वृक्ष का महत्व केवल इस बात में भी नहीं है कि राजस्थानी किसान की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार यह वृक्ष है। खेजड़ के पेड़ का नाम ही शमी वृक्ष है जिस पर महाभारत के युद्ध के समय बभ्रुवाहन का सर टांगा था. — श्री भावेश, वेब दुनिया

  • खेजड़ी : [विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से]  वैज्ञानिक वर्गीकरण – जगत: पादप, विभाग: मैग्नोलियोप्सीडा, वर्ग: मैग्नोलियोफाइटा, गण: फैबल्स, कुल: फैबेसी, प्रजाति: प्रोसोपिस, जाति: P. सिनेरारिया, द्विपद नाम [प्रोसोपिस सिनेरारिया] .

  • खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

  • इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं।

  • इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है।

  • खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है।

  • जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है।

  • इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है।

  • इसकी जड़ से हल बनता है।

  • अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है।

  • सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे।

  • इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।
साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व
खेजड़ी का वृक्ष राजस्थानी भाषा में कन्हैयालाल सेठिया की कविता 'मींझर' बहुत प्रसिद्द है है। यह थार के रेगिस्तान में पाए जाने वाले वृक्ष खेजड़ी के सम्बन्ध में है। इस कविता में खेजड़ी की उपयोगिता और महत्व का सुन्दर चित्रण किया गया है।
[१] दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है
[२] रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है।
[३] पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं।
[४] इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।
[5] शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है।
[६] वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है।
[७] इसी प्रकार वारों में शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है।

14 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार जानकारी का.

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

दीनदयाल शर्मा ने कहा…

खेजड़ी के बारे में आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है..बधाई. खेजड़ी की एक विशेषता ये भी है कि इसकी जड़ें पातळ तक जाती है.इसीलिए अकाल में भी ये हरी रहती है...इनकी पतियों को लूँग कहते हैं..जिन्हें बकरियां बड़े चाव से खाती है.. एक और खास बात कि सूखने के बाद भी इनकी पत्तियां हरी रहती है..इससे यह प्रेरणा मिलती है कि आदमी को दुःख में प्रसन्न रहना चाहिए..

Amit Sharma ने कहा…

एक मान्यता है कि जहाँ तक शमी वृक्ष कि छाया पड़ती है, उतनी भूमि परम पवित्र होती है.
तो इसी प्रकार एक बार माघ कवि जो कि जांगल प्रदेश यानि कि वर्तमान राजस्थान में ही रहते थे. को परम आवश्यक कार्य हेतु , जांगल प्रदेश से बाहर जना पड़ा जो कि उनकी इस भूमि से पहली ही यात्रा थी, अब जब तक जांगल प्रदेश कि सीमा से बाहर निकले तो हर तीन सो क़दमों पे एक गड्ढा खोदे और उसमे उतरकर एक माला गायत्री कि जपते उसके बाद ही आगे बढ़ते, साथ वाले हैरान-परेशान.
महाकवि उनके मनोभाव ताड़ गए और समझाया कि जांगल कि भूमि तो शमी वृक्षों से अटी पड़ी है, लेकिन इस शमी वृक्ष हीन भूमि पे चलने के लिए तो गायत्री ही का सहारा है.
जैसा कि दीनदयाल जी ने बताया कि शमी कि पत्तियां सूखने के बाद भी हरी रहती है, के कारण ही इसे मंगलकारी और अक्षय माना जाता है. और इसीलिए राजस्थान में खासतोर से जब भी किसी नगर कि नीव रखी जाती थी तो उस जगह शमी वृक्ष लगाया जाता था जिसे "थूनी रोपना" कहा जाता है.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

बहुत सही.
अभिज्ञानशाकुंतलम में शमी वृक्ष के बारे में पढ़ा था, तब सोचा था कि इसे घर लाऊंगा पर फिर व्यस्तता में भूल गया था और आज आपसे इतनी जानकारी पाकर अच्छा लगा.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आपके ब्लॉग से पेड़ों की ये जानकारी लिए जा रही हूँ ......!!

महामूर्खराज ने कहा…

gyanwardhak lekh licchi aur aam ka samay hai to apane bagano toda wayast hun yahi der se aane ka karan hai kshamaparthi mahamurkhraj

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut acchi jaankaari di hai aapne..
aapka aabhaar...

kunwarji's ने कहा…

shami ki baate bahut jami....

jaankaari se labaalab lekh..

kunwar ji,

SATYA ने कहा…

जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। बस दुःख इस बात का है की हमारे महान देश की नई पौध इन सब से दूर होती जा रही है।

Unknown ने कहा…

lijiye ek ped aapke mohalle me bhi.
mere blog par aane ke liye shukriya.tippani ke liye bhi.mulakat hoti rahegi.pedon ki chhanw me.

दिव्यांशु भारद्वाज ने कहा…

एक ऐसा ब्लॉग भी है जिस पर पेंड़-पौधों के बारे में लिखा जाता है, यह देख कर बड़ी खुशी हुई।
शमी और सांगड़ी के बारे में सुना था लेकिन यह पता नहीं था कि दोनों एक हैं। शमी के बारे में आपके लेख और लोगों की टिप्पणियों से इतनी अधिक जानकारी मिली इसके लिए बहुत-बहुत आभार।

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

प्रतुल जी, नमस्कार

धन्यवाद आपका जो आप मेरे ब्लॉग पर पधारे .
अछि जानकारी दी है आपने इस वृक्ष के बारे में .....

और हमारा ये कार्टून काजल कुमार जी ने बनाया है .........इनकी साईट का लिंक दे रहा हूँ जरुर देखिएगा

http://kajalkumarcartoons.blogspot.com/

Prof G S Tomar ने कहा…

सुंदर और उपयोगी आलेख। साधुवाद।

http://raamkahaani.blogspot.com/

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