बुधवार, 31 मार्च 2010

तेजू भाई से मुलाक़ात

अब आगे ...

रास्ते में ओवरब्रिज, पुलिया नदी-नाले तो कई मिले लेकिन उन्हें तो दिल्ली के एक घमंडी ओवरब्रिज से मिलना था। दिल्ली शहर में घुसीं और तब देखे उन्होंने मेट्रो दीक्षित के जलवे और ओवर ब्रिजों का नज़ारा।

रेलबाला ने पटरीरानी को उस ओवरब्रिज से मिलवाया। नमस्ते हुई।

रेलबाला ने कहा — ये तेजू भाई हैं, इन के कारण यातायात की गति तेज़ हो गयी इसलिए सभी इन्हें तेजू खन्ना कहते हैं। और तेजू भाई, ये मेरी सहेली है, आपको जानती नहीं थी सो मिलवाने ले आयी।

तेजू खन्ना बोले — ए! तुम मुझे भैया-वैया मत कहो। मैं तुमसे पहले भी मना कर चुका हूँ। मैं दिल्ली की जानी-मानी हस्ती हूँ। मैं समस्त दिल्ली की सड़कों का प्रमुख हूँ। मेरी हैसियत गवर्नर से कम नहीं। कोई बिहारी-शियारी या पुरबिया-शुरबिया होता तो मैं "आम रास्ता नहीं का बोर्ड लगाकर" लात मारके बाहर करता। क्योंकि तुम ब्यूटीफुल हो इसलिए बात कर रहा हूँ। तुम मुझे मिस्टर तेजू ब्रिज कह सकती हो।

तुहें मालूम है — दिल्ली में बस दुर्घटनाएँ क्यों हुईं? इन नोर्थ इंडियंस सड़कों और राजमार्गों ने दिल्ली में घुसकर नियमों का पालन नहीं किया। जगह-जगह क़ानून तोड़े। जहाँ मन आया वहाँ से निकल पड़े और शहरी मार्गों से मिल गए। इनके कारण हमारी यातायात व्यवस्था बिगड़ गयी। एक्सीडेंट बड़े। हादसे हुए। लोग मरे। इल्जाम हम पर आया।

मैं तो कहता हूँ कि 'दिल्ली' देश की ऎसी राजधानी हो जिसकी सड़कों के किनारे मॉल हों, बिजनिस कॉम्प्लेक्स हों। चमाचम लाईटिंग हो। सब्जी मंडियाँ और लेबर चौक जाने वाले रास्तों की ओर सड़कें न जुडी हों।

ब्रिज हों तो अपार्टमेंट्स से, मॉलों से जुड़े। या, ओफिसिज़ कि ओर खुले। पब्लिक स्कूलों की ओर मुँह किये या पिकनिक स्पोटों की ओर बाँह फैलाए। कुछ दिनों में देखना मैं इन ऐरे-गेरे राह चलते रास्तों का दिल्ली में घुसना बंद कर दूँगा। हर रास्ते पर अपना आई कार्ड होगा, साइन बोर्ड होगा। जिन पर नहीं होगा, मिटा दिए जायेंगे।

पटरीरानी सुनकर तिलमिला गयी। बोली — मैं सब जानती हूँ। कौन क़ानून तोड़ता है। जहां फ़ायदा देखा नहीं उसी के हो लिए। क्या मैं जानती नहीं। शहर की सड़कें जितनी अपने को सभ्य कहती हैं उनके भीतर कितने गटर, कितनी नालियाँ बहती हैं। और सबके सब कहाँ जाते हैं, किसे गंदा करते हैं। मुझसे तो नहीं छिपा। बेशक तुम अपने को पौश या संभ्रांत कहो लेकिन तुम जैसे कितनों ही के कारण भूजल की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है, बारिश भी होती है तो बाढ़ का कारण बनती है। जहाँ पानी कि ज़रुरत है वहां पानी जाता नहीं। भूजल स्तर नीचे और नीचे आता जा रहा है। उसपर तुम रैनी वैल की बात करके हल निकाल लेने की बात करते हो। तुम एक तरफ तो पर्यावरण हितैषी बनते हो दूसरी तरफ तुम जैसों के ही कारण देश के साफ़-सुथरे पर्यावरण में पान्त्वाद का प्रदूषण फ़ैल रहा है। मैं सब जानती हूँ — इन दिनों कितने पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं। मेट्रो-सिटी बनाने का नाम पर क्या खेल खेला जा रहा है, क्या मैं जानती नहीं। तुम केवल यहाँ पर गाडी कि जगह गड्डी चलाने के हिमायती हो। आने वाले सालों में देश-विदेश कि सड़कों की कबड्डी करवानी है इसलिए इन्हें छोटी-छोटी सड़कों, पगडंडियों और देहाती रास्तों को मिटाने की सूझी। इनसे इनकी इज्ज़त खराब हो रही है। मालूम होना चाहिए कि बड़ी सड़कें तब तक ही बड़ी हैं जब तक छोटी सड़कों और पगडंडियों का वजूद है। तुम घमंड से इतना फूल चुके हो कि धरती के अन्दर पड़ रही दरारों को नहीं देख पाते। कभी चरमराकर गिरोगे तब होश ठिकाने आयेंगे। बनावटी सड़कें, पुल, मॉल सब एक साथ बोलेंगे (नष्ट होंगे) और अपने देसी रास्ते ही तुम्हे राह दिखाएँगे। चल बाला! इस घमंडी की कारिस्तानी से दुखी नदी से तुझे मिलाती हूँ। तब करना इस पर्यावरण प्रेमी से दोस्ती।

शेष अगले अंक में....

3 टिप्‍पणियां:

saurabh ने कहा…

manvikaran ka adbhut namoona......achha laga...

शशांक शुक्ला ने कहा…

क्रिएटिव लिखा है अच्छा लगा

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

http://raamkahaani.blogspot.com/

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